यह कविता भी हमे डां अनिल सवेरा जी ने भेजी है.
गुन गुना कर मच्छर जी ने
कान खा लिये रात
कहां कहां नही काटा उसने
क्या बताये बात.
मुंह पर काटा, हाथ भी काटा
काटे दोनो पांव
काट लिया शरीर सारा
लगा जहां भी दांव
तरकीब लडाई जितनी भी
वो सारी हो गई फ़ेल
मच्छर जी ने रात भर
बनाई हमारी रेल
Dr.anil savera
विद्यार्थी का मौलिकता का घोषणा पत्र
4 hours ago
3 आप की राय:
ये मच्छरों की कथा बढिया रही, सुंदर कविता, आपका आभार और अनिल सवेरा जी को धन्यवाद.
रामराम.
भाटिया साहब आदाब!
आपने बहुत ही अच्छा सुनहरा अवसर दिया है..बच्चों के लिए...आज लोग बच्चों के लिए कहाँ कुछ कर रहे हैं..मैंने भी आएश और आमश के बहाने बच्चों से कुछ बातें करने के लिए एक कोना बनाया है..कभी मौक़ा मिले तो आयें ज़रूर स्वागत है,
मच्छर जी ने रेल बना दी
वाह् भइया!
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