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मेला (एक पंजाबी बाल कविता)

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

यह कविता भी मुझे डां अनिल सवेरा जी ने भेजी है , ओर मै यहां सब बच्चो के नाम इसे प्रकाशित कर रहा हुं.

साढे पिंड बिच लग्या मेला
 मै बापू नाल ग्या अकेला


बज रिया सी पॊ पॊ वाजा
झुले वाला केन्दा आजा

खिडोने बिकदे प्यारे प्यारे
बिकदे सी रंग बिरंगे गुब्बारे


मिठ्ठाई वेखी ते टपकी लार
जादुगर दा शो तेयार

घुमे अस्सी मज्जे नाल मेला
रेह्या जेब चा ना ईक भी धेला

   Dr. Anil savera

4 आप की राय:

ताऊ रामपुरिया said...

घुमे अस्सी मज्जे नाल मेला
रेह्या जेब चा ना ईक भी धेला

वाह वाह..मजा आगया.

रामराम.

Unknown said...

bahut achi.........

रावेंद्रकुमार रवि said...

बहुत सुंदर जी,
इतनी पंजाबी तो हमें भी समझ में आ जाती है!

Unknown said...

Wow.......
I like it........

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