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पैसे

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

यह बाल कविता भी हमे अनिल सवेरा जी ने भेजी है

बंदर बाबु पेंट पहन कर
पहुंच गये ससुराल.

खा के मीठा पान उन्होने
होंठ कर लिये लाल

बंदरिया भी सम्रार्ट बन गई
पहन के लंहगा चोली

खाऊंगी मै रस मलाई
बंदर से वह बोली

रस मलाई खाते कैसे?
पास नही था पैसा


लोट के घर को आये ऎसे
बंधु गये थे जेसे