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मेरे नाम अनेक -डा. नागेश पांडेय 'संजय'

प्रस्तुतकर्ता डॉ. नागेश पांडेय संजय

शिशुगीत : डा. नागेश पांडेय 'संजय'

मेरे नाम अनेक , दोस्तों , 
मैं छोटा सा भोलू . 
कोई मुझसे सोनू कहता ,
 कोई  कहता गोलू .
दादा जी कहते हैं टिंकू , 
दादी कहती कालू . 
मम्मी मुझसे लल्ला कहतीं,
 पापा कहते लालू . 
मेरे घर जब आता कोई,
कहता -नाम बताओ ?
चुप रह जाता , सर चकराता
क्या बोलूँ ? बतलाओ ?

[] लेखक की अन्य रचनाएँ यहाँ पढ़िए .

रविवार का दिन

प्रस्तुतकर्ता डॉ. नागेश पांडेय संजय






बालगीत : डा, नागेश पांडेय ' संजय '

मैं क्या मेरे सारे साथी
करते हैं इकरार,
सभी दिनों में सबसे अच्छा
दिन होता रविवार ।

चाहो तो घर पर खेलो या
फिर पिकनिक पर जाओ,
चाहो तो नजदीक गाँव की
सैर करो, हरषाओ।

कहने का मतलब, जो चाहो
हँस कर कर लो यार!
सभी दिनों में सबसे अच्छा
दिन होता रविवार ।

पापा-मम्मी दोनों का ही
प्यार मजे से पाओ,
कुछ खाओ तो उनके हाथों
बारी-बारी खाओ।

सोना हो तो माँ से मांगो
थपकी और दुलार,
सभी दिनों में सबसे अच्छा
दिन होता रविवार ।

काम क्लास का करना कितना
देखो झट कर डालो,
तुम अच्छे हो इसीलिए कुछ
पढ़ा-लिखा दोहरा लो।

हँसी, ज्ञान-विज्ञान के लिए
पढ़ो खूब  अखबार,
सभी दिनों में सबसे अच्छा
दिन होता रविवार ।
परिचय : डा. नागेश पांडेय \ 
डा. नागेश पांडेय 'संजय' ,
 सुभाष नगर , निकट रेलवे कालोनी , 
शाहजहांपुर - २४२००१ (उ.प्र., भारत )
ई -मेल -
dr.nagesh.pandey.sanjay@gmail.com

होली की तैयारी......!

प्रस्तुतकर्ता डॉ. मोनिका शर्मा


आओ आओ सारे मिलकर

होली की तैयारी कर लें

सतरंगी रंगों को घोलें

पिचकारी में उनको भर लें।


ऊंच नीच का भाव छोड़कर

सबको रंग देने की ठानें

लाख मनाये कोई हमको

पर हम रंग लगाके मानें


चारो ओर हैं खुशियाँ छाई

आने वाली है अब होली

धूम धड़ाका करने को है

हम सारे बच्चों की टोली


बंदर भैया

प्रस्तुतकर्ता डॉ. मोनिका शर्मा



बदले बदले बंदर भैया
लटक मटक कर चलते
कभी तो चलते सीधे-सीधे
कभी घूम के पलटते


मैया बोली बेटा बंदर
उलट-पुलट क्यों कपङे पहने
नई नई सी चीजें हैं ये
आँखों पे चश्मा कानों में गहने


बंदर बोला मैं तो मैया
कैटवॉक अब करूंगा
छोङूंगा पेङों पर चढना
स्टाइल से चलूंगा

मैया बोली बेटा बंदर
क्या तेरे मन में आया
उछल कूद छोङकर यों
बिल्ली बनना क्यों भाया






संज्ञा

प्रस्तुतकर्ता Anonymous

प्यारे नन्हे मुन्ने बच्चो!
प्यार
व्याकरण से बहुत घबराते हो न?क्या करे कुछ तो ये होती ही नीरस उस पर स्कूल्स में हम टीचर्स इसे पढ़ते भी है बड़े उबाऊ तरीके से. मैंने तुम्हारे लिए कई कोर्स की जरूरी जानकारियों को छोटी छोटी कविता का रूप दे दिया है जिन्हें तुम गा गा कर याद कर सकते हो.अच्छी न लगे तो बताना.
देखो भाई मैं तो अपने स्कूल के बच्चों को ऐसे ही पढ़ाती हूँ.क्या करूं?
ऐसीच हूँ मैं तो.
किन्तु बच्चों से बहुत बहुत प्यार करती हूँ और मेरे स्कूल के बच्चे भी मुझे बहुत प्यार करते हैं.अब तुम्हारा प्यार पाना चाहती हूँ.
हा हा हा 
मुझसे दोस्ती करोगे न? तो लो ये एक कविता तुम्हारे लिए.

संज्ञा संज्ञा क्या करते हो? 
संज्ञा किसको कहते हैं?
व्यक्ति,वस्तु,स्थान,भाव के 
'नाम' को संज्ञा कहते हैं.

सर्वनाम

प्रस्तुतकर्ता Anonymous

संज्ञा के स्थान पर जो शब्द काम आते हैं
हिंदी भाषा में वे सारे सर्वनाम कहलाते हैं.

स्लेज

प्रस्तुतकर्ता Anonymous

बिन पहिये की ये है गाडी 
सामान लादो या करो सवारी
रेनडियर या कुत्ते इसको खींचते है
इस गाडी को 'स्लेज' सब कहते हैं

इग्लू,

प्रस्तुतकर्ता Anonymous


                  बने बर्फ के गोल गोल घर
                  इसमें घुसते रेंग रेंग कर 
                  'एस्किमोज़' इसमें रहते हैं
                  इस घर को 'इग्लू' कहते हैं


"मुनुआ रोये ऊं ऊं ऊं "

प्रस्तुतकर्ता डॉ. नागेश पांडेय संजय


प्यारे बच्चों ! 
मेरे पड़ोस में एक छोटा सा बच्चा रहता है .
 उसका नाम है मुनुआ .
 हर रोज उसका एक अजीबोगरीब सवाल होता है .
 एक बार उसने पूछा -
 "अम्मा मेरे मूंछ न क्यों ?"
माँ ने जबाब तो दिया , मगर ...! मगर... ? 
 तो तुम खुद ही  पढो न यह बाल गीत . 
सारी बात जान जाओगे . 
हाँ मुझे बताना जरुर , तुम्हें कैसा लगा यह बाल गीत ?
 बताओगे न ? 
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डा. नागेश पांडेय 'संजय'का बाल गीत :
"मुनुआ रोये ऊं ऊं ऊं "

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मुनुआ  रोए ऊँ ऊं ऊं
अम्मा मेरे मूंछ न क्यों ?

 चाचा मुझे चिढाते  है 
अपनी मूंछ दिखाते है
 हंस हंस कर बतलाते है
 मूंछ तुम्हारे थी लेकिन
 बिल्ली आई चाट गयी
 अम्मा अम्मा   बोलो  तो
 क्या चाचा की बात सही
 बात सही हो तो नकटी
 बिल्ली की मूंछे नोचू .
 बोलो बोलो मूंछ न क्यों

अरे अभी तू छोटा है 
और नहीं तू मोटा है
 साग सब्जिया खाया कर
 दूध खूब सटकाया कर 
खूब बड़ा हो जायेगा
 तंदुरुस्त बन जायेगा
 मूंछे खुश हो जाएगी
 झट पट चट उग आयेंगी
 चाचा की बाते सुनकर 
बेमतलब ही चिढ़ता तू .
 अब मत रोना ऊँ ऊँ ऊँ

 माँ , मुझको बहकाओ मत
 बाते ढेर बनाओ मत
 बिल्ला के भी मूंछे है
 पिल्ला के भी मूंछे है
 बिल्ला भी तो छोटा है 
पिल्ला तनिक न मोटा है 
मैंने मन में ठाना है 
मूंछे मुझको पाना है
 नकली ही तुम मगवा दो 
उन्हें लगाकर खुश हो लूँ .
 तब न रोऊ ऊँ ऊँ ऊँ 
तब न पूंछू मूंछ न क्यों ?
[] [] []
 
 चित्र : गूगल सर्च से साभार 

 

बेटी

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

डा० अनिल सवेरा जी की एक अति सुंदर रचना.....

बेटी भी है मुझ को प्यारी
बेटे जितनी ही,
मै बताऊ बातें तुमको
उस की कितनी हे.


छम छम छम छम नाचे जब वो
रॊनक लगती हे,
मोहनी उस की सुरत
सब के मन को लगती हे.


सब कामो मे सब से आगे
वही तो रहती हे
नाम करुंगी रोशन  जग मे
सब से कहती हे

 चित्र लिया गया हे ... mankapakhi.blogspot.com अगर किसी को ऎतराज होगा तो हटा लिया जायेगा,

एक सवाल देखे कोन सही जबाब देता हे...

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

बच्चो ओर बडो आज एक बहुत आसान सा सवाल आप सब से पूछने का मन हे, लेकिन इस का जबाब सिर्फ़ ओर सिर्फ़ आप लोगो के पास ही हे, गुगल मे ढुंढ कर अपना वक्त खराब ना करे...ओर आप कितने भी जबाब दे आप का अंतिम जबाब ही माना जायेगा अगर वो सही हुआ तो वर्ना कल इसी समय आप को इस सवाल का जबाब मिल जायेगा

पुरी दुनिया मे ऎसा कोन सा इंसान हे जिस ने आज तक झुठ नही बोला? 

आओ स्कूल चले हम...

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

बच्चो तुम स्कूल जाते हो क्या? अरे... डरते नही.... देखो तो सही कितने बच्चे स्कूल जाते हे..

हमको कथा सुनाओ न!

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

यह बाल गीत हमे भेजा हे..डॉ. नागेश पांडेय "संजय" जी ने,

रात हो रही नानी जल्दी
पास हमारे आओ न,
प्यार-प्यारी सुंदर सी कोई
हमको कथा सुनाओ न!

जिसको सुनकर हम सब बच्चे
धीर बनें, गंभीर बनें,
बुरे काम से दूर रहें, सच्चाई
की तस्वीर बनें।
हम सबके मन के उपवन में
गुण के पुष्प खिलाओ न!

मेल-जोल की बातें सीखें
श्रम अपनाएँ हम,
बाधाओं से लड़ने का
अनुक्रम अपनाएँ हम।
प्रेम, शांति के दूत बनें, कुछ
ऐसा हमें सिखाओ न।
प्यारी-प्यारी सुंदर सी कोई
हमको कथा सुनाओ न।
साभार , 
डॉ. नागेश पांडेय "संजय"

निराला अखबार

प्रस्तुतकर्ता Sulabh Jaiswal "सुलभ"

प्यारे बच्चो! मुझे पता है  बहुत खुश हो आजकल छुट्टियां चल रही है नये साल का लुत्फ़ उठा रहे हो....है न. लो आज एक कविता. जिसे तुम रोज देखते हो, और इसके कुछ पन्ने पढ़ते भी हो.


~निराला अखबार~

घर घर आता है अखबार
कितना निराला है अखबार


छोटी हो या बड़ी घटनाएं
दूर दूर की ये कौड़ी लाये
ताजा ताजा सुबह को आता
हम सबका आलस भगाता
सचाई इसकी हमें स्वीकार
कितना निराला है अखबार

दिल्ली लन्दन झुमरी-तलैया
पढ़ते सब हैं इसको भैया
रंग बिरंगा पेज सलोना
देखो इसमें बच्चो का कोना
खेल वाणिज्य और व्यापार
लाये सबके समाचार
कितना निराला है अखबार

सोचो यदि न होता अखबार
जीवन रहता बेमजेदार !!
 

.............बताना कैसी लगी! फिर मिलेंगे जल्द ही. (सुलभ जायसवाल)





घुमक्कड़ पुल्लू

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

केसे हो बच्चो तुम सब, अरे अरे अब तो छुट्टियां चल रही होगी ना; तो खुब मजा ले रहे होंगे ना, दादा दादी तो बहुत खुश होंगे, लेकिन ममा ओर पापा की नाक मे दम कर रखा होगा, सची न..... चलो आज हम तुम्हे नये साल पर एक बहुत सुंदर कविता उपहार मे पढा रहे हे..... अरे सुनो सुनो... पहले पढो तो सही फ़िर देखना कितना मजा आयेगा, लेकिन यह कविता मैने थोडे लिखी हे, अब जिन अंकल ने लिखी हे पहले उन से मिल लो ना,.....

यह प्यारी सी कविता हमे  डॉ. नागेश पांडेय "संजय" अकंल( आप सब के अंकल) ने इ मेल से स्पेशल आप सब के लिये भेजी हे, अरे अब इन का चित्र भी साथ मे लगा रहा हुं खुद ही मिल से, जेसे इन की प्यारी प्यारी कविता हे ना वेसे ही यह भी प्यारे प्यारे लगते हे, तो यह रहा इन का चित्र, ओर उस के नीचे इन का सुंदर शिशु गीत.

घुमक्कड़ पुल्लू

एक बार की बात
 घुमक्कड़ पुल्लू , 
घुम्मी करते- करते
 पहुंचे कुल्लू . 
पर कुल्लू  की
 ठण्ड देख घबडाए , 
छींक  मारते 
घर को वापस आए . 

डा. नागेश पांडेय ' संजय ' 
बच्चो बताना केसा लगा यह शिशु गीत, ओर अंकल को धन्यवाद देना