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बंदर भैया

प्रस्तुतकर्ता डॉ. मोनिका शर्मा



बदले बदले बंदर भैया
लटक मटक कर चलते
कभी तो चलते सीधे-सीधे
कभी घूम के पलटते


मैया बोली बेटा बंदर
उलट-पुलट क्यों कपङे पहने
नई नई सी चीजें हैं ये
आँखों पे चश्मा कानों में गहने


बंदर बोला मैं तो मैया
कैटवॉक अब करूंगा
छोङूंगा पेङों पर चढना
स्टाइल से चलूंगा

मैया बोली बेटा बंदर
क्या तेरे मन में आया
उछल कूद छोङकर यों
बिल्ली बनना क्यों भाया






8 आप की राय:

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर बाल गीत...आखिर बन्दर भी आज के समय में पीछे क्यों रहे..

राज भाटिय़ा said...

वाह जी बहुत सुंदर बाल गीत, धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया said...

बेहद सुंदर गीत, शुभकामनाएं.

रामराम.

girish pankaj said...

bade hi pyare-dulare baal-geet hai. mazaa aa gaya. inako aur bhi achchha banayaa ja saktaahai. aur ye ban jayenge..vaah, kyaa baat hai.

Anonymous said...

ha ha ha maza aa gaya ,bander sabse natkhat janwar hai
mazedar kavita

पूनम श्रीवास्तव said...

raj ji
bahut bahut hi man ko bhai bandar ji ki stail
janmjaat ye hote natkhat,inki kartuto se bhari file.
behad pasand aai aapki yah bal-kavita
dhanyvaad --
poonam

रावेंद्रकुमार रवि said...

यह बंदर तो बहुत शरारती है!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आप सबकी प्यारी टिप्पणियों के लिए आभार ...

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