प्यारे बच्चो! मुझे पता है बहुत खुश हो आजकल छुट्टियां चल रही है नये साल का लुत्फ़ उठा रहे हो....है न. लो आज एक कविता. जिसे तुम रोज देखते हो, और इसके कुछ पन्ने पढ़ते भी हो.
~निराला अखबार~
कितना निराला है अखबार
छोटी हो या बड़ी घटनाएं
दूर दूर की ये कौड़ी लाये
ताजा ताजा सुबह को आता
हम सबका आलस भगाता
सचाई इसकी हमें स्वीकार
कितना निराला है अखबार
दिल्ली लन्दन झुमरी-तलैया
पढ़ते सब हैं इसको भैया
रंग बिरंगा पेज सलोना
देखो इसमें बच्चो का कोना
खेल वाणिज्य और व्यापार
लाये सबके समाचार
कितना निराला है अखबार
सोचो यदि न होता अखबार
जीवन रहता बेमजेदार !!
.............बताना कैसी लगी! फिर मिलेंगे जल्द ही. (सुलभ जायसवाल)
8 आप की राय:
गज़ब रही भाई
bahut hi achchhi bal kavita...
अच्छी प्रस्तुति !
रेडियो के दिनों के बाद तो भूल ही गए थे झुमरी तलैया को.
सोचो यदि न होता अखबार
जीवन रहता बेमजेदार !!
Naya Sal Mubarak Pur
बहुत सुंदर जी आप का यह नया अखबार, धन्यवाद
यह ब्लॉग बहुत २ सुंदर है.अच्छा लगा पढना.मई इसे अपनी बेटी को भी दिखाऊंगी.
नव वर्ष की शुभकामनाएँ.
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