नमस्कार, आईये जुडे मेरे इस ब्लांग से, आप अपनी बाल कहानियां, कविताय़ॆ,ओर अन्य समाग्री जो बच्चो से के लायक हो इस ब्लांग मे जोडॆ,आप अगर चाहे तो आप भी इस ब्लांग के मेम्बर बने ओर सीधे अपने विचार यहां रखे, मेम्बर बनने के लिये मुझे इस e mail पर मेल करे, ... rajbhatia007@gmail.com आप का सहयोग हमारे लिये बहुमुल्य है,आईये ओर मेरा हाथ बटाये.सभी इस ब्लांग से जुड सकते है, लेकिन आप की रचनाये सिर्फ़ सिर्फ़ हिन्दी मे हो, आप सब का धन्यवाद

मच्छर जी

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

यह कविता भी हमे डां अनिल सवेरा जी ने भेजी है.


गुन गुना कर मच्छर जी ने
कान खा लिये रात
कहां कहां नही काटा उसने
क्या बताये बात.


मुंह पर काटा, हाथ भी काटा
काटे दोनो पांव
काट लिया शरीर सारा
लगा जहां भी दांव

तरकीब लडाई जितनी भी
वो सारी हो गई फ़ेल
मच्छर जी ने रात भर
बनाई हमारी रेल



Dr.anil savera

3 आप की राय:

ताऊ रामपुरिया said...

ये मच्छरों की कथा बढिया रही, सुंदर कविता, आपका आभार और अनिल सवेरा जी को धन्यवाद.

रामराम.

एमाला said...

भाटिया साहब आदाब!

आपने बहुत ही अच्छा सुनहरा अवसर दिया है..बच्चों के लिए...आज लोग बच्चों के लिए कहाँ कुछ कर रहे हैं..मैंने भी आएश और आमश के बहाने बच्चों से कुछ बातें करने के लिए एक कोना बनाया है..कभी मौक़ा मिले तो आयें ज़रूर स्वागत है,

रावेंद्रकुमार रवि said...

मच्छर जी ने रेल बना दी
वाह् भइया!

Post a Comment

नमस्कार,आप सब का स्वागत हे, एक सुचना आप सब के लिये जिस पोस्ट पर आप टिपण्णी दे रहे हे, अगर यह पोस्ट चार दिन से ज्यादा पुरानी हे तो माडरेशन चालू हे, ओर इसे जल्द ही प्रकाशित किया जायेगा,नयी पोस्ट पर कोई माडरेशन नही हे, आप का धन्यवाद टिपण्णी देने के लिये