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अपने से
चाहने वाले
्बच्चो आओ ओर देखो कार्टुन फ़िम , अरे हिन्दी मे देखो ओर हिन्दी मे हसंओ,देखा अपनी भाषा मे कितना प्यार हे, तो चलो देखे हिन्दी मे कार्टुन...
बच्चो.... आओ आज तुम्हे एक बहुत पुरानी प्राथना सुनाये, इस प्राथना को द्यान से सुनना ओर ऎसॆ ही बनाना, ओर बच्चो सुन कर बताना केसी लगी यह वंदना
प्रेम मुदित मन से कहो, राम, राम, राम .
राम, राम, राम, श्री राम, राम, राम ..
पाप कटें, दुःख मिटें, लेत राम नाम .
भव समुद्र, सुखद नाव, एक राम नाम ..
प्रेम मुदित मन से कहो, राम, राम, राम .
राम, राम, राम, श्री राम, राम, राम ..
परम शांति, सुख निधान, नित्य राम नाम .
निराधार को आधार, एक राम नाम ..
प्रेम मुदित मन से कहो, राम, राम, राम .
राम, राम, राम, श्री राम, राम, राम ..
संत हृदय सदा बसत, एक राम नाम .
परम गोप्य, परम इष्ट, मंत्र राम नाम ..
प्रेम मुदित मन से कहो, राम, राम, राम .
राम, राम, राम, श्री राम, राम, राम ..
महादेव सतत जपत, दिव्य राम नाम .
राम, राम, राम, श्री राम, राम, राम ..
प्रेम मुदित मन से कहो, राम, राम, राम .
राम, राम, राम, श्री राम, राम, राम ..
मात पिता, बंधु सखा, सब ही राम नाम .
भक्त जनन, जीवन धन, एक राम नाम ..
प्रेम मुदित मन से कहो, राम, राम, राम .
राम, राम, राम, श्री राम, राम, राम ..
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हारिये न हिम्मत, बिसारिये न राम
हारिये न हिम्मत, बिसारिये न राम .
तू क्यों सोचे बंदे, सब की सोचे राम ..
दीपक ले के हाथ में, सतगुरु राह दिखाये .
पर मन मूरख बावरा, आप अँधेरे जाए ..
हारिये न हिम्मत, बिसारिये न राम .
तू क्यों सोचे बंदे, सब की सोचे राम ..
पाप पुण्य और भले बुरे की, वो ही करता तोल .
ये सौदे नहीं जगत हाट के, तू क्या जाने मोल ..
हारिये न हिम्मत, बिसारिये न राम .
तू क्यों सोचे बंदे, सब की सोचे राम ..
जैसा जिस का काम, पाता वैसे दाम .
हारिये न हिम्मत, बिसारिये न राम .
तू क्यों सोचे बंदे, सब की सोचे राम ..
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श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण
श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम् ,
नवकञ्ज लोचन कञ्ज मुखकर कञ्जपद कञ्जारुणम् ........1
कंदर्प अगणित अमित छबि नव नील नीरज सुन्दरम् ,
पटपीत मानहुं तड़ित रुचि सुचि नौमि जनक सुतावरम् ........2
भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंशनिकन्दनम् ,
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द दशरथ नन्दनम् .............3
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदार अङ्ग विभूषणम् ,
आजानुभुज सर चापधर सङ्ग्राम जित खरदूषणम् .............4
इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मनरञ्जनम् ,
मम हृदयकञ्ज निवास कुरु कामादिखलदलमञ्जनम् .............5
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भज मन राम
भज मन राम चरण सुखदाई .....1
जिन चरनन से निकलीं सुर सरि, शंकर जटा समायी .
जटा शन्करी नाम पड़्यो है, त्रिभुवन तारन आयी ..
भज मन राम चरण सुखदाई ..2
शिव सनकादिक अरु ब्रह्मादिक, शेष सहस मुख गायी .
तुलसीदास मारुतसुत की प्रभु, निज मुख करत बड़ाई ..
भज मन राम चरण सुखदाई ..
**********************************************************
ठुमक चलत रामचंद्र
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां ..
किलकि किलकि उठत धाय,
गिरत भूमि लटपटाय .
धाय मात गोद लेत,
दशरथ की रनियां .
अंचल रज अंग झारि,
विविध भांति सो दुलारि .
तन मन धन वारि वारि,
कहत मृदु बचनियां .
विद्रुम से अरुण अधर,
बोलत मुख मधुर मधुर .
सुभग नासिका में चारु,
लटकत लटकनियां .
तुलसीदास अति आनंद,
देख के मुखारविंद .
रघुवर छबि के समान
रघुवर छबि बनियां ..
बुझो तो जाने???? बताईये यह क्या है ? एक फ़ल?? या एक अधखिला फ़ुल?? या कुछ ओर , ओर इस का नाम क्या है???? अब बुझने के लिये तो यहां दबाना पडेगा
मुसीबत से छुटकारा, बच्चो आओ आज तुम्हे एक बहुत ही अच्छी कहानी सुनाये, ध्यान से सुनना, ओर कुछ सीख भी लेना. ओर फ़िर बताना केसी लगी आप को यह कहानी, अगर तुम्हारी पसंद की कोई कहानी हो तो हमे बताओ, हम तुम्हारे लिये लाये गे, अच्छी अच्छी कहानियां, चलो अब देर मत करो ओर देखो यह सुन्दर कहानी........
हेलो बच्चो, केसे हो, सब ठीक हे ना, स्कुल का काम कर लिया, बहुत अच्छे,चलो आज तुम्हे एक बात बताते हे, कि समुन्द्र का पानी खारा केसे हुआ, सुनो बताना मत किसी को, ओर हा मुझे जरुर बताना केसी लगी यह कहानी..तो सुनो आज की कहानी...
खारा समुन्द्र
बच्चो आओ आज आप को एक बहुत ही सुन्दर भजन भी तो सुना दे ना.....
आज तुम्हे एक दोस्ती की कहानी सुनाता हु, सुन कर जरुर बताना केसी लगी, कहानी का नाम हे *यात्री ओर रीछ* बच्चो पता हे रीछ कया होता हे, ओर यात्री कया होता हे, अरे मामी से पुछो ना, फ़िर मुझे बताना कहानी केसी लगी, तुम्हारे जबाब की इन्त्जार मे..... तो सुनो कहानी *यात्री ओर रीछ*
आओ बच्चो आज तुम्हे एक बहुत ही अच्छी कहानी सुनाता हु, लकडियो का गट्ठर, फ़िर बताना केसी लगी...
जानकी नाथ सहाय करें
जानकी नाथ सहाय करें जब कौन बिगाड़ करे नर तेरो ..
सुरज मंगल सोम भृगु सुत बुध और गुरु वरदायक तेरो .
राहु केतु की नाहिं गम्यता संग शनीचर होत हुचेरो .
जानकी नाथ सहाय करें जब कौन बिगाड़ करे नर तेरो ..
दुष्ट दु:शासन विमल द्रौपदी चीर उतार कुमंतर प्रेरो .
ताकी सहाय करी करुणानिधि बढ़ गये चीर के भार घनेरो .
जानकी नाथ सहाय करें जब कौन बिगाड़ करे नर तेरो ..
जाकी सहाय करी करुणानिधि ताके जगत में भाग बढ़े रो .
रघुवंशी संतन सुखदायी तुलसीदास चरनन को चेरो .
जानकी नाथ सहाय करें जब कौन बिगाड़ करे नर तेरो ..
******************************************************
राम से बड़ा राम.......
राम से बड़ा राम का नाम .
अंत में निकला ये परिणाम, ये परिणाम,
राम से बड़ा राम का नाम ........
सिमरिये नाम रूप बिनु देखे,
कौड़ी लगे ना दाम .
नाम के बांधे खिंचे आयेंगे,
आखिर एक दिन राम .
राम से बड़ा राम का नाम ........
जिस सागर को बिना सेतु के ,
लांघ सके ना राम .
कूद गये हनुमान उसी को,
लेकर राम का नाम .
राम से बड़ा राम का नाम .........
वो दिलवाले डूब जायेंगे ओर वो दिलवाले क्या पायेंगे ,
जिनमें नहीं है नाम ..
वो पत्थर भी तैरेंगे जिन पर
लिखा हुआ श्री राम.
राम से बड़ा राम का नाम ..................
******************************************************
सीताराम, सीताराम, सीताराम कहिये
सीताराम, सीताराम, सीताराम कहिये .
जाहि विधि राखे, राम ताहि विधि रहिये ..
मुख में हो राम नाम, राम सेवा हाथ में .
तू अकेला नाहिं प्यारे, राम तेरे साथ में .
विधि का विधान, जान हानि लाभ सहिये .
सीताराम, सीताराम, सीताराम कहिये .
जाहि विधि राखे, राम ताहि विधि रहिये ....
किया अभिमान, तो फिर मान नहीं पायेगा .
होगा प्यारे वही, जो श्री रामजी को भायेगा .
फल आशा त्याग, शुभ कर्म करते रहिये .
सीताराम, सीताराम, सीताराम कहिये .
जाहि विधि राखे, राम ताहि विधि रहिये ..
ज़िन्दगी की डोर सौंप, हाथ दीनानाथ के .
महलों मे राखे, चाहे झोंपड़ी मे वास दे .
धन्यवाद, निर्विवाद, राम राम कहिये .
सीताराम, सीताराम, सीताराम कहिये .
जाहि विधि राखे, राम ताहि विधि रहिये ..
आशा एक रामजी से, दूजी आशा छोड़ दे .
नाता एक रामजी से, दूजे नाते तोड़ दे .
साधु संग, राम रंग, अंग अंग रंगिये .
काम रस त्याग, प्यारे राम रस पगिये .
सीता राम सीता राम सीताराम कहिये .
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ..
**************************************************************
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..
जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ......
भला बुरा सब का सुन लीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ......
आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में .......
प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ........
कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में .. .......
************************************************************
पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो
पायो जी मैंने....
राम रतन धन पायो ..
वस्तु अमोलिक,
दी मेरे सतगुरु,
किरपा करि अपनायो .
पायो जी मैंने,
राम रतन धन पायो .......
जनम जनम की पूंजी पाई,
जग में सभी खोवायो .
पायो जी मैंने,
राम रतन धन पायो ........
खरचै न खूटै,
जाको चोर न लूटै,
दिन दिन बढ़त सवायो .
पायो जी मैंने,
राम रतन धन पायो ......
सत की नाव,
खेवटिया सतगुरु,
भवसागर तर आयो .
पायो जी मैंने,
राम रतन धन पायो ......
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर,
हरष हरष जस गायो .
पायो जी मैंने,
राम रतन धन पायो .....
**************************************************
बच्चो क्या हाल हे, अरे सब उदास क्यो हो, चलो आज तुम्हे एक बहुत अच्छी कहानी सुनाता हु, लेकिन कहानी सुन कर जरुर बताना केसी लगी.... अच्छी या बुरी ... तभी तो मे कल नयी कहानी सुना पाऊगा, तो सुनो आज की कहानी... *जो हुआ अच्छा हुआ*
बच्चो आओ आज तुम्हे बहुत ही अच्छी कहानी सुनाता हु, कहानी का नाम हे व्यापारी का गधा, व्यापारी किसे कहते हे, मालुम हे, क्या कहा नही? चलिये आप अपने माता पिता से पुछे, आप को जरुर बताये गे, तो चलो आप को कहानी सुनाता हु...व्यापारी का गधा, ओर अपनी राय जरुर देना,फ़िर आप की राय से दुसरी कहानी लाऊ गा......
बच्चो नमस्कार, क्या हाल हे आज आप सब का, आओ आज तुम्हे एक ओर सुन्दर कहानी सुनाये, कहानी का नाम हे सोने का अंडा.... कहानी सुन कर बताना केसी लगी यह कहानी, ओर अपनी राय जरुर देना.....तो सुनो कहानी
रविवार की आरती
कहुँ लगि आरती दास करेंगे, सकल जगत जाकि जोति विराजे ।। टेक
सात समुद्र जाके चरण बसे, कहा भयो जल कुम्भ भरे हो राम ।
कोटि भानु जाके नख की शोभा, कहा भयो मन्दिर दीप धरे हो राम ।
भार उठारह रोमावलि जाके, कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम ।
छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे, कहा भयो नैवेघ धरे हो राम ।
अमित कोटि जाके बाजा बाजे, कहा भयो झनकार करे हो राम ।
चार वेद जाके मुख की शोभा, कहा भयो ब्रहम वेद पढ़े हो राम ।
शिव सनकादिक आदि ब्रहमादिक, नारद मुनि जाको ध्यान धरें हो राम ।
हिम मंदार जाको पवन झकेरिं, कहा भयो शिर चँवर ढुरे हो राम ।
लख चौरासी बन्दे छुड़ाये, केवल हरियश नामदेव गाये ।। हो रामा ।
विधि
सर्व मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु रविवार का व्रत श्रेष्ठ है । इस व्रत की विधि इस प्रकार है । प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण करें । शान्तचित्त होकर परमात्मा का स्मरण करें । भोजन एक समय से अधिक नहीं करना चाहिये । भोजन तथा फलाहार सूर्य के प्रकाश रहते ही कर लेना उचित है । यदि निराहार रहने पर सूर्य छिप जाये तो दुसरे दिन सूर्य उदय हो जाने पर अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करें । व्रत के अंत में व्रत कथा सुननी चाहिये ।
व्रत के दिन नमकीन तेलयुक्त भोन कदापि ग्रहण न करें । इस व्रत के करने से मान-सम्मान बढ़ता है तथा शत्रुओं का क्षय होता है । आँख की पीड़ा के अतिरिक्त अन्य सब पीड़ायें दूर होती है ।कथा एक बुढ़िया थी । उसका नियम था प्रति रविवार को सबेरे ही स्नान आदि कर घर को गोबर से लीपकर फिर भोजन तैयकर कर भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन करती थी । ऐसा व्रत करने से उसका घर अनेक प्रकार के धन धान्य से पूर्ण था । श्री हरि की कृपा से घर में किसी प्रकार का विघ्न या दुःख नहीं था । सब प्रकार से घर में आनन्द रहता था ।
इस तरह कुछ दिन बीत जाने पर उसकी एक पड़ोसन जिसकी गौ का गोबर वह बुढ़िया लाया करती थी विचार करने लगी कि यह वृद्घा सर्वदा मेरी गौ का गोबर ले जाती है । इसलिये अपनी गौ को घर के भीतर बांधने लग गई । बुढ़िया को गोबर न मिलने से रविवार के दिन अपने घर को न लीप सकी । इसलिये उसने न तो भोजन बनाया न भगवान को भोग लगाया तथा स्वयं भी उसने भोजन नहीं किया । इस प्रकार उसने निराहार व्रत किया । रात्रि हो गई और वह भूखी सो गई । रात्रि में भगवान ने उसे स्वप्न दिया और भोजन न बनाने तथा लगाने का कारण पूछा। वृद्घा ने गोबर न मिलने का कारण सुनाया तब भगवान ने कहा कि मातात हम तुमको ऐसी गौ देते है जिससे सभी इच्छाएं पूर्ण होती है । क्योंकि तुम हमेशा रविवार को गौ के गोबर से लीपकर भोजन बनाकर मेरा भोग लगाकर खुद भोजन करती हो । इससे मैं खुश होकर तुमको वरदान देता हूँ ।
निर्धन को धन और बांझ स्त्रियों को पुत्र देकर दुःखों को दूर करता हूँ तथा अन्त समय में मोक्ष देता हूँ । स्वप्न में ऐसा वरदान देकर भगवान तो अन्तर्दान हो गए और वृद्घा की आँख खुली तो वह देखती है कि आँगन में एक अति सुन्दर गौ और बछड़ा बँधे हुए है । वह गाय और बछड़े को देखकर अति प्रसन्न हुई और उसको घर के बाहर बाँध दिया और वहीं खाने को चारा डाल दिया । जब उसकी पड़ोसन बुढ़िया ने घर के बाहर एक अति सुन्दर गौ और बछड़े को देखा तो द्घेष के कारण उसका हृदय जल उठा और उसने देखा कि गाय ने सोने का गोबर किया है तो वह उस गाय का गोबर ले गई और अपनी गाय का गोबर उसकी जगह रख गई ।
वह नित्यप्रति ऐसा ही करती रही और सीधी-साधी बुढ़िया को इसकी खबर नहीं होने दी । तब सर्वव्यापी ईश्वर ने सोचा कि चालाक पड़ोसन के कर्म से बुढ़िया ठगी जा रही है तो ईश्वय ने संध्या के समय अपनी माया से बड़े जोर की आँधी चला दी । बुढ़िया ने आँधि के भय से अपनी गौ को भीतर बाँध लिया । प्रातःकाल जब वृद्गा ने देखा कि गौ ने सोने का गोबर दिया तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही और वह प्रतिदिन गऊ को घर के भीतर ही बाँधने लगी । उधर पड़ोसन ने देखा कि बुढ़िया गऊ को घर के भीतर बांधने लगी है और उसका सोने का गोबर उठाने गा दैँव नहीं चलता तो वह ईर्ष्या और डाह से जल उठी और कुछ उपाय न देख पड़ोसन ने उस देश के राजा की सभा में जाकर कहा महाराज मेरे पड़ोस में एक वृद्घा के पास ऐसा गऊ है जो आप जैसे राजाओं के ही योग्य है, वह नित्य सोने का गोबर देती है । आप उस सोने से प्रजा का पालन करिये । वह वृद्घा इतने सोने का क्या करेगी । राजा ने यह बात सुनकर अपने दूतों को वृद्घा के घर से गऊ लाने की आज्ञा दी । वृद्घा प्रातः ईश्वर का भोग लगा भोजन ग्रहण करने जा ही रही थी कि राजा के कर्मचारी गऊ खोलकर ले गये । वृद्घा काफी रोई-चिल्लाई किन्तु कर्मचारियों के समक्ष कोई क्या कहता ।
उस दिन वृद्घा गऊ के वियोग में भोजन न खा सकी और रात भर रो-रो कर ईश्वर से गऊ को पुनः पाने के लिये प्रार्थना करती रही । उधर राजा गऊ को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ लिकिन सुबह जैसे ही वह उठा, सारा महल गोबर से भरा दिखाई देने लगा । राजा यह देख घबरा गया । भगवान ने रात्रि में राजा को स्वप्न में कहा कि हे राजा । गाय वृद्घा को लौटाने में ही तेरा भला है । उसके रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर मैंने उसे गाय दी थी । प्रातः होते ही राजा ने वृद्घा को बुलाकर बहुत से धन के साथ सम्मान सहित गऊ बछड़ा लौटा दिया । उसकी पड़ोसिन को बुलाकर उचित दण्ड दिया । इतना करने के बाद राजा के महल से गन्दगी दूर हुई । उसी दिन से राजा ने नगरवासियों को आदेस दिया कि राज्य की तथा अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये रविवार का व्रत रखा करो । व्रत करने से नगर के लोग सुखी जीवन व्यतीत करने लगे । कोई भी बीमारी तथा प्रकृति का प्रकोप उस नगर पर नहीं होता था । सारी प्रजा सुख से रहने लगी ।
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई
छांड़ी दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई
संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई...
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई...
अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई
अब तो बेल फैल गई आंनद फल होई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई....
दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई...
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई....
यह भजन हम सब के लिए हे
पायो जी मैने राम रतन धन पायो
पायो जी मैने राम रतन धन पायो
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु,
किरपा कर अपनायो
पायो जी मैने राम रतन धन पायो
जनम जनम की पूंजी पाई,
जग में सभी खोवायो
पायो जी मैने राम रतन धन पायो
खरचे ना खूटे, चोर न लूटे,
दिन-दिन बढ़त सवायो
पायो जी मैने राम रतन धन पायो
सत की नाव खेवटिया सतगुरु,
भवसागर तर आयो
पायो जी मैने राम रतन धन पायो
मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
हरष हरष जस गायो
पायो जी मैने राम रतन धन पायो......
आओ बच्चो तुम्हे आज एक कहानी सुनाये,गधो की कहानी... अरे यह कहानी बहुत अच्छी हे, ओर गधे पता कोन हे, भाई तुम खुद ही देख लो, इन तीनो मे गधे कोन हे, ओर मुझे बताना केसी लगी आप को यह फ़िल्म
बच्चो आओ आप को आज दो अच्छे बच्चो की कहानी सुनाते हे, नाम हे इन दोनो का लव ओर कुश, पता हे यह दोनो कोन हे, यह दोनो भगवान राम के बेटे हे, तो सुनो इन की आरती, फ़िर कभी इन की कहानी भी सुनायेगे॥
आओ बच्चो तुम्हे एक कहानी सुनाये, चुहो की सभा.... इस फ़िल्म तुम ने क्या देखा , ओर क्या शिक्षा ली मुझे जरुर बताना, तो चलो देखो चुहो की सभा....
बच्चो आओ आज तुम्हे एक सुन्दर ओर शिक्षा भरी कहानी सुनाये.. कहानी का नाम हे एकता मे ही बल हे, अब यह कहनी देखॊ फ़िर मुझे बताना केसी लगी आप को यह कहानी, ओर तुम ने क्या शिक्षा ली इस कहानी से...
बच्चो आओ आज तुम्हे हम एक खरगोश की कहानी सुनाये गे,बहुत सयाना हे यह खरगोश, पुरी कहानी सुन कर बताना क्या सीखा...........
किसी घने वन में एक बहुत बड़ा शेर रहता था। वह रोज शिकार पर निकलता और एक ही नहीं, दो नहीं कई-कई जानवरों का काम तमाम देता। जंगल के जानवर डरने लगे कि अगर शेर इसी तरह शिकार करता रहा तो एक दिन ऐसा आयेगा कि जंगल में कोई भी जानवर नहीं बचेगा। सारे जंगल में सनसनी फैल गई। शेर को रोकने के लिये कोई न कोई उपाय करना ज़रूरी था। एक दिन जंगल के सारे जानवर इकट्ठा हुए और इस प्रश्न पर विचार करने लगे। अन्त में उन्होंने तय किया कि वे सब शेर के पास जाकर उनसे इस बारे में बात करें।
दूसरे दिन जानवरों के एकदल शेर के पास पहुंचा। उनके अपनी ओर आते देख शेर घबरा गया और उसने गरजकर पूछा, ‘‘क्या बात है ? तुम सब यहां क्यों आ रहे हो ?’’जानवर दल के नेता ने कहा, ‘‘महाराज, हम आपके पास निवेदन करने आये हैं। आप राजा हैं और हम आपकी प्रजा। जब आप शिकार करने निकलते हैं तो बहुत जानवर मार डालते हैं। आप सबको खा भी नहीं पाते। इस तरह से हमारी संख्या कम होती जा रही है। अगर ऐसा ही होता रहा तो कुछ ही दिनों में जंगल में आपके सिवाय और कोई भी नहीं बचेगा। प्रजा के बिना राजा भी कैसे रह सकता है ? यदि हम सभी मर जायेंगे तो आप भी राजा नहीं रहेंगे। हम चाहते हैं कि आप सदा हमारे राजा बने रहें।
आपसे हमारी विनती है कि आप अपने घर पर ही रहा करें। हर रोज स्वयं आपके खाने के लिए एक जानवर भेज दिया करेंगे। इस तरह से राजा और प्रजा दोनों ही चैन से रह सकेंगे।’’शेर को लगा कि जानवरों की बात में सच्चाई है। उसने पलभर सोचा, फिर बोला अच्छी बात नहीं है। मैं तुम्हारे सुझाव को मान लेता हूं। लेकिन याद रखना, अगर किसी भी दिन तुमने मेरे खाने के लिये पूरा भोजन नहीं भेजा तो मैं जितने जानवर चाहूंगा, मार डालूंगा।’’जानवरों के पास तो और कोई चारा नहीं। इसलिये उन्होंने शेर की शर्त मान ली और अपने-अपने घर चले गये। उस दिन से हर रोज शेर के खाने के लिये एक जानवर भेजा जाने लगा। इसके लिये जंगल में रहने वाले सब जानवरों में से एक-एक जानवर, बारी-बारी से चुना जाता था। कुछ दिन बाद खरगोशों की बारी भी आ गई। शेर के भोजन के लिये एक नन्हें से खरगोश को चुना गया। वह खरगोश जितना छोटा था, उतना ही चतुर भी था।
उसने सोचा, बेकार में शेर के हाथों मरना मूर्खता है अपनी जान बचाने का कोई न कोई उपाय अवश्य करना चाहिये, और हो सके तो कोई ऐसी तरकीब ढूंढ़नी चाहिये जिसे सभी को इस मुसीबत से सदा के लिए छुटकारा मिल जाये। आखिर उसने एक तरकीब सोच ही निकाली। खरगोश धीरे-धीरे आराम से शेर के घर की ओर चल पड़ा। जब वह शेर के पास पहुंचा तो बहुत देर हो चुकी थी। भूख के मारे शेर का बुरा हाल हो रहा था। जब उसने सिर्फ एक छोटे से खरगोश को अपनी ओर आते देखा तो गुस्से से बौखला उठा और गरजकर बोला, ‘‘किसने तुम्हें भेजा है ? एक तो पिद्दी जैसे हो, दूसरे इतनी देर से आ रहे हो। जिन बेवकूफों ने तुम्हें भेजा है मैं उन सबको ठीक करूंगा।
एक-एक का काम तमाम न किया तो मेरा नाम भी शेर नहीं।’’नन्हे खरोगश ने आदर से ज़मीन तक झुककर, ‘‘महाराज, अगर आप कृपा करके मेरी बात सुन लें तो मुझे या और जानवरों को दोष नहीं देंगे। वे तो जानते थे कि एक छोटा सा खरगोश आपके भोजन के लिए पूरा नहीं पड़ेगा, ‘इसलिए उन्होंने छह खरगोश भेजे थे। लेकिन रास्ते में हमें एक और शेर मिल गया। उसने पांच खरगोशों को मारकर खा लिया।’’यह सुनते ही शेर दहाड़कर बोला, ‘‘क्या कहा ? दूसरा शेर ? कौन है वह ? तुमने उसे कहां देखा ?’’‘‘महाराज, वह तो बहुत ही बड़ा शेर है’’, खरगोश ने कहा, ‘‘वह ज़मीन के अन्दर बनी एक बड़ी गुफा में से निकला था। वह तो मुझे ही मारने जा रहा था। पर मैंने उससे कहा, ‘सरकार, आपको पता नहीं कि आपने क्या अन्धेर कर दिया है। हम सब अपने महाराज के भोजन के लिये जा रहे थे, लेकिन आपने उनका सारा खाना खा लिया है। हमारे महाराज ऐसी बातें सहन नहीं करेंगे। वे ज़रूर ही यहाँ आकर आपको मार डालेंगे।’‘‘इस पर उसने पूछा, ‘कौन है तुम्हारा राजा ?’ मैंने जवाब दिया, ‘हमारा राजा जंगल का सबसे बड़ा शेर है।’‘‘महाराज, ‘मेरे ऐसा कहते ही वह गुस्से से लाल-पीला होकर बोला बेवकूफ इस जंगल का राजा सिर्फ मैं हूं। यहां सब जानवर मेरी प्रजा हैं। मैं उनके साथ जैसा चाहूं वैसा कर सकता हूं। जिस मूर्ख को तुम अपना राजा कहते हो उस चोर को मेरे सामने हाजिर करो। मैं उसे बताऊंगा कि असली राजा कौन है।’ महाराज इतना कहकर उस शेर ने आपको लिवाने के लिए मुझे यहां भेज दिया।’’खरगोश की बात सुनकर शेर को बड़ा गुस्सा आया और वह बार-बार गरजने लगा। उसकी भयानक गरज से सारा जंगल दहलने लगा।
‘‘मुझे फौरन उस मूर्ख का पता बताओ’’, शेर ने दहाड़कर कहा, ‘‘जब तक मैं उसे जान से न मार दूँगा मुझे चैन नहीं मिलेगा।’’‘‘बहुत अच्छा महाराज,’’ खरगोश ने कहा ‘‘मौत ही उस दुष्ट की सजा है। अगर मैं और बड़ा और मजबूत होता तो मैं खुद ही उसके टुकड़े-टुकड़े कर देता।’’‘‘चलो, ‘रास्ता दिखाओ,’’ शेर ने कहा, ‘‘फौरन बताओ किधर चलना है ?’’‘‘इधर आइये महाराज, इधर, ‘‘खगगोश रास्ता दिखाते हुआ शेर को एक कुएँ के पास ले गया और बोला, ‘‘महाराज, वह दुष्ट शेर ज़मीन के नीचे किले में रहता है। जरा सावधान रहियेगा। किले में छुपा दुश्मन खतरनाक होता है।’’‘‘मैं उससे निपट लूँगा,’’ शेर ने कहा, ‘‘तुम यह बताओ कि वह है कहाँ ?’’‘‘पहले जब मैंने उसे देखा था तब तो वह यहीं बाहर खड़ा था। लगता है आपको आता देखकर वह किले में घुस गया। आइये मैं आपको दिखाता हूँ।’’ खरगोश ने कुएं के नजदीक आकर शेर से अन्दर झांकने के लिये कहा। शेर ने कुएं के अन्दर झांका तो उसे कुएं के पानी में अपनी परछाईं दिखाई दी। परछाईं को देखकर शेर ज़ोर से दहाड़ा। कुएं के अन्दर से आती हुई अपने ही दहाड़ने की गूंज सुनकर उसने समझा कि दूसरा शेर भी दहाड़ रहा है। दुश्मन को तुरंत मार डालने के इरादे से वह फौरन कुएं में कूद पड़ा। कूदते ही पहले तो वह कुएं की दीवार से टकराया फिर धड़ाम से पानी में गिरा और डूबकर मर गया। इस तरह चतुराई से शेर से छुट्टी पाकर नन्हा खरगोश घर लौटा। उसने जंगल के जानवरों को शेर के मारे जाने की कहानी सुनाई। दुश्मन के मारे जाने की खबर से सारे जंगल में खुशी फैल गई। जंगल के सभी जानवर खरगोश की जय-जयकार करने लगे।