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मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई
छांड़ी दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई
संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई...
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई...
अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई
अब तो बेल फैल गई आंनद फल होई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई....
दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई

माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई...
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई....

1 आप की राय:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर मीरा बाई का भजन ! मन
प्रफुल्लित हो गया ! बहुत धन्यवाद !

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