मेरी नातिन
मेरी नातिन गोल मटोल्मीठे लगते उसके बोल
बातें करके इतराती है
ऐसे सुरताल बनाती है
जैसे हो सरगम अनमोल
सुनाती हूँ दिन भर की शरारत
लडकी है या कोई बुझारत
बात इशारों से समझाये
मम्मी पापा भी चकराये
उठते ही कसमसाती है
जैसे कुछ समझाती है
ना समझो तो शोर मचाती ह
सब की सिटीपिटी गुम हो जाती है
फिर पापा बात समझते हैं
नैपी उसका बदलते हैं
फिर वो सहज हो जाती है
शरारत से मुस्कराती है
आज बस इतना ही काफी
जाने की चाहती हूँ माफी
कल फिर से मै आऊँगी
नयी शरारत बतलाऊँगी
ध्न्यवाद ... लेखक निर्मला कपिला जी का
4 आप की राय:
बहुत सुंदर, आभार आपका.
रामराम.
बडी प्यारी है आपकी नातिन ।
बच्चे कितने प्यारे होते हैं। मन लुभा ही लेते हैं।
Bahut sundar kavita, bachapan ki baten aapki kavita padh kar phir yaad aa gayi...
Regards..
DevPalmistry|Lines Tell the story of ur life
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