धरती
तितली भौंरे इस पर झूमें रोज हवाएं इसको चूमें | |
चंदा इसका भाई चचेरा बादल के घर जिसका डेरा | |
रोज लगाती सूरज फेरा रात कहीं है, कहीं सवेरा | |
पर्वत, झील, नदी, झरने नित पड़ते पोखर भरने | |
लोमड़, गीदड़ शेर-बघेरे करते निशि-दिन यहां चुफेरे | |
बोझ हमारा जो है सहती वही हमारी प्यारी धरती |
--श्याम सखा 'श्याम'
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4 आप की राय:
श्याम जी की ये कविता बडी प्यारी है। शुक्रिया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
श्याम जी, बहुत सुंदर कविता कही आप ने , आप का धन्यवाद
bahut sundar kavita hai shyamsakha ji ko badhai apka dhanyvad
Vah ..bachchon ke liye shikshhaprad..sundar panktiyan.
Hemant Kumar
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