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प्रस्तुतकर्ता gazalkbahane


धरती






तितली भौंरे इस पर झूमें
रोज हवाएं इसको चूमें
चंदा इसका भाई चचेरा
बादल के घर जिसका डेरा
रोज लगाती सूरज फेरा
रात कहीं है, कहीं सवेरा
पर्वत, झील, नदी, झरने
नित पड़ते पोखर भरने
लोमड़, गीदड़ शेर-बघेरे
करते निशि-दिन यहां चुफेरे
बोझ हमारा जो है सहती
वही हमारी प्यारी धरती


--श्याम सखा 'श्याम'
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4 आप की राय:

Science Bloggers Association said...

श्‍याम जी की ये कविता बडी प्‍यारी है। शुक्रिया।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

राज भाटिय़ा said...

श्‍याम जी, बहुत सुंदर कविता कही आप ने , आप का धन्यवाद

निर्मला कपिला said...

bahut sundar kavita hai shyamsakha ji ko badhai apka dhanyvad

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Vah ..bachchon ke liye shikshhaprad..sundar panktiyan.
Hemant Kumar

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