चिडिया बाल कविता
चिडिया बन जाऊँ
चाह रहा चिडिया बन जाऊँ।
पँख लगा कर नभ छू जाऊँ।
मुझ को अच्छा लगता ऊडना,
डाल डाल मीठे फल चखना।
देश भविश्य नया सुख पाऊँ.
चाह रहा चिडिया बन जाऊँ।
पर्वत सागर घूमूँ जी भर,
रहूँ किसी पर कभी न निर्भर।
तारों के संग नाचूँ गाऊँ.
चाह रहा चिडिया बन जाऊँ।
सरल मधुर हो खग सा जीवन ,
हो सुख दुख से उपर तन मन ।
जो भी मिले खुशी से खाऊँ,
चाह रहा चिडिया बन जाऊँ।
लेखक डा. चक्रधर नलिन
चिडिया बन जाऊँ
चाह रहा चिडिया बन जाऊँ।
पँख लगा कर नभ छू जाऊँ।
मुझ को अच्छा लगता ऊडना,
डाल डाल मीठे फल चखना।
देश भविश्य नया सुख पाऊँ.
चाह रहा चिडिया बन जाऊँ।
पर्वत सागर घूमूँ जी भर,
रहूँ किसी पर कभी न निर्भर।
तारों के संग नाचूँ गाऊँ.
चाह रहा चिडिया बन जाऊँ।
सरल मधुर हो खग सा जीवन ,
हो सुख दुख से उपर तन मन ।
जो भी मिले खुशी से खाऊँ,
चाह रहा चिडिया बन जाऊँ।
लेखक डा. चक्रधर नलिन
5 आप की राय:
बहुत सुंदर गीत.
रामराम.
सुंदर कविता है। नलिन जी की कविता को यहां लाने का शुक्रिया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
निर्मला जी बहुत ही सुंदर कविता आप ने हमे पढने को दी, आप का ओर नलिन जी का धन्यवाद
kya khub likha hai. dhnaibad. lihkte rahen
हम भी लाइन में हैं जी, चिड़िया बनने को ।
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