जानकी नाथ सहाय करें
जानकी नाथ सहाय करें जब कौन बिगाड़ करे नर तेरो ..
सुरज मंगल सोम भृगु सुत बुध और गुरु वरदायक तेरो .
राहु केतु की नाहिं गम्यता संग शनीचर होत हुचेरो .
जानकी नाथ सहाय करें जब कौन बिगाड़ करे नर तेरो ..
दुष्ट दु:शासन विमल द्रौपदी चीर उतार कुमंतर प्रेरो .
ताकी सहाय करी करुणानिधि बढ़ गये चीर के भार घनेरो .
जानकी नाथ सहाय करें जब कौन बिगाड़ करे नर तेरो ..
जाकी सहाय करी करुणानिधि ताके जगत में भाग बढ़े रो .
रघुवंशी संतन सुखदायी तुलसीदास चरनन को चेरो .
जानकी नाथ सहाय करें जब कौन बिगाड़ करे नर तेरो ..
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राम से बड़ा राम.......
राम से बड़ा राम का नाम .
अंत में निकला ये परिणाम, ये परिणाम,
राम से बड़ा राम का नाम ........
सिमरिये नाम रूप बिनु देखे,
कौड़ी लगे ना दाम .
नाम के बांधे खिंचे आयेंगे,
आखिर एक दिन राम .
राम से बड़ा राम का नाम ........
जिस सागर को बिना सेतु के ,
लांघ सके ना राम .
कूद गये हनुमान उसी को,
लेकर राम का नाम .
राम से बड़ा राम का नाम .........
वो दिलवाले डूब जायेंगे ओर वो दिलवाले क्या पायेंगे ,
जिनमें नहीं है नाम ..
वो पत्थर भी तैरेंगे जिन पर
लिखा हुआ श्री राम.
राम से बड़ा राम का नाम ..................
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सीताराम, सीताराम, सीताराम कहिये
सीताराम, सीताराम, सीताराम कहिये .
जाहि विधि राखे, राम ताहि विधि रहिये ..
मुख में हो राम नाम, राम सेवा हाथ में .
तू अकेला नाहिं प्यारे, राम तेरे साथ में .
विधि का विधान, जान हानि लाभ सहिये .
सीताराम, सीताराम, सीताराम कहिये .
जाहि विधि राखे, राम ताहि विधि रहिये ....
किया अभिमान, तो फिर मान नहीं पायेगा .
होगा प्यारे वही, जो श्री रामजी को भायेगा .
फल आशा त्याग, शुभ कर्म करते रहिये .
सीताराम, सीताराम, सीताराम कहिये .
जाहि विधि राखे, राम ताहि विधि रहिये ..
ज़िन्दगी की डोर सौंप, हाथ दीनानाथ के .
महलों मे राखे, चाहे झोंपड़ी मे वास दे .
धन्यवाद, निर्विवाद, राम राम कहिये .
सीताराम, सीताराम, सीताराम कहिये .
जाहि विधि राखे, राम ताहि विधि रहिये ..
आशा एक रामजी से, दूजी आशा छोड़ दे .
नाता एक रामजी से, दूजे नाते तोड़ दे .
साधु संग, राम रंग, अंग अंग रंगिये .
काम रस त्याग, प्यारे राम रस पगिये .
सीता राम सीता राम सीताराम कहिये .
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ..
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मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..
जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ......
भला बुरा सब का सुन लीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ......
आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में .......
प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ........
कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में .. .......
************************************************************
पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो
पायो जी मैंने....
राम रतन धन पायो ..
वस्तु अमोलिक,
दी मेरे सतगुरु,
किरपा करि अपनायो .
पायो जी मैंने,
राम रतन धन पायो .......
जनम जनम की पूंजी पाई,
जग में सभी खोवायो .
पायो जी मैंने,
राम रतन धन पायो ........
खरचै न खूटै,
जाको चोर न लूटै,
दिन दिन बढ़त सवायो .
पायो जी मैंने,
राम रतन धन पायो ......
सत की नाव,
खेवटिया सतगुरु,
भवसागर तर आयो .
पायो जी मैंने,
राम रतन धन पायो ......
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर,
हरष हरष जस गायो .
पायो जी मैंने,
राम रतन धन पायो .....
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बच्चो क्या हाल हे, अरे सब उदास क्यो हो, चलो आज तुम्हे एक बहुत अच्छी कहानी सुनाता हु, लेकिन कहानी सुन कर जरुर बताना केसी लगी.... अच्छी या बुरी ... तभी तो मे कल नयी कहानी सुना पाऊगा, तो सुनो आज की कहानी... *जो हुआ अच्छा हुआ*
बच्चो आओ आज तुम्हे बहुत ही अच्छी कहानी सुनाता हु, कहानी का नाम हे व्यापारी का गधा, व्यापारी किसे कहते हे, मालुम हे, क्या कहा नही? चलिये आप अपने माता पिता से पुछे, आप को जरुर बताये गे, तो चलो आप को कहानी सुनाता हु...व्यापारी का गधा, ओर अपनी राय जरुर देना,फ़िर आप की राय से दुसरी कहानी लाऊ गा......
बच्चो नमस्कार, क्या हाल हे आज आप सब का, आओ आज तुम्हे एक ओर सुन्दर कहानी सुनाये, कहानी का नाम हे सोने का अंडा.... कहानी सुन कर बताना केसी लगी यह कहानी, ओर अपनी राय जरुर देना.....तो सुनो कहानी
रविवार की आरती
कहुँ लगि आरती दास करेंगे, सकल जगत जाकि जोति विराजे ।। टेक
सात समुद्र जाके चरण बसे, कहा भयो जल कुम्भ भरे हो राम ।
कोटि भानु जाके नख की शोभा, कहा भयो मन्दिर दीप धरे हो राम ।
भार उठारह रोमावलि जाके, कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम ।
छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे, कहा भयो नैवेघ धरे हो राम ।
अमित कोटि जाके बाजा बाजे, कहा भयो झनकार करे हो राम ।
चार वेद जाके मुख की शोभा, कहा भयो ब्रहम वेद पढ़े हो राम ।
शिव सनकादिक आदि ब्रहमादिक, नारद मुनि जाको ध्यान धरें हो राम ।
हिम मंदार जाको पवन झकेरिं, कहा भयो शिर चँवर ढुरे हो राम ।
लख चौरासी बन्दे छुड़ाये, केवल हरियश नामदेव गाये ।। हो रामा ।
विधि
सर्व मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु रविवार का व्रत श्रेष्ठ है । इस व्रत की विधि इस प्रकार है । प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण करें । शान्तचित्त होकर परमात्मा का स्मरण करें । भोजन एक समय से अधिक नहीं करना चाहिये । भोजन तथा फलाहार सूर्य के प्रकाश रहते ही कर लेना उचित है । यदि निराहार रहने पर सूर्य छिप जाये तो दुसरे दिन सूर्य उदय हो जाने पर अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करें । व्रत के अंत में व्रत कथा सुननी चाहिये ।
व्रत के दिन नमकीन तेलयुक्त भोन कदापि ग्रहण न करें । इस व्रत के करने से मान-सम्मान बढ़ता है तथा शत्रुओं का क्षय होता है । आँख की पीड़ा के अतिरिक्त अन्य सब पीड़ायें दूर होती है ।कथा एक बुढ़िया थी । उसका नियम था प्रति रविवार को सबेरे ही स्नान आदि कर घर को गोबर से लीपकर फिर भोजन तैयकर कर भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन करती थी । ऐसा व्रत करने से उसका घर अनेक प्रकार के धन धान्य से पूर्ण था । श्री हरि की कृपा से घर में किसी प्रकार का विघ्न या दुःख नहीं था । सब प्रकार से घर में आनन्द रहता था ।
इस तरह कुछ दिन बीत जाने पर उसकी एक पड़ोसन जिसकी गौ का गोबर वह बुढ़िया लाया करती थी विचार करने लगी कि यह वृद्घा सर्वदा मेरी गौ का गोबर ले जाती है । इसलिये अपनी गौ को घर के भीतर बांधने लग गई । बुढ़िया को गोबर न मिलने से रविवार के दिन अपने घर को न लीप सकी । इसलिये उसने न तो भोजन बनाया न भगवान को भोग लगाया तथा स्वयं भी उसने भोजन नहीं किया । इस प्रकार उसने निराहार व्रत किया । रात्रि हो गई और वह भूखी सो गई । रात्रि में भगवान ने उसे स्वप्न दिया और भोजन न बनाने तथा लगाने का कारण पूछा। वृद्घा ने गोबर न मिलने का कारण सुनाया तब भगवान ने कहा कि मातात हम तुमको ऐसी गौ देते है जिससे सभी इच्छाएं पूर्ण होती है । क्योंकि तुम हमेशा रविवार को गौ के गोबर से लीपकर भोजन बनाकर मेरा भोग लगाकर खुद भोजन करती हो । इससे मैं खुश होकर तुमको वरदान देता हूँ ।
निर्धन को धन और बांझ स्त्रियों को पुत्र देकर दुःखों को दूर करता हूँ तथा अन्त समय में मोक्ष देता हूँ । स्वप्न में ऐसा वरदान देकर भगवान तो अन्तर्दान हो गए और वृद्घा की आँख खुली तो वह देखती है कि आँगन में एक अति सुन्दर गौ और बछड़ा बँधे हुए है । वह गाय और बछड़े को देखकर अति प्रसन्न हुई और उसको घर के बाहर बाँध दिया और वहीं खाने को चारा डाल दिया । जब उसकी पड़ोसन बुढ़िया ने घर के बाहर एक अति सुन्दर गौ और बछड़े को देखा तो द्घेष के कारण उसका हृदय जल उठा और उसने देखा कि गाय ने सोने का गोबर किया है तो वह उस गाय का गोबर ले गई और अपनी गाय का गोबर उसकी जगह रख गई ।
वह नित्यप्रति ऐसा ही करती रही और सीधी-साधी बुढ़िया को इसकी खबर नहीं होने दी । तब सर्वव्यापी ईश्वर ने सोचा कि चालाक पड़ोसन के कर्म से बुढ़िया ठगी जा रही है तो ईश्वय ने संध्या के समय अपनी माया से बड़े जोर की आँधी चला दी । बुढ़िया ने आँधि के भय से अपनी गौ को भीतर बाँध लिया । प्रातःकाल जब वृद्गा ने देखा कि गौ ने सोने का गोबर दिया तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही और वह प्रतिदिन गऊ को घर के भीतर ही बाँधने लगी । उधर पड़ोसन ने देखा कि बुढ़िया गऊ को घर के भीतर बांधने लगी है और उसका सोने का गोबर उठाने गा दैँव नहीं चलता तो वह ईर्ष्या और डाह से जल उठी और कुछ उपाय न देख पड़ोसन ने उस देश के राजा की सभा में जाकर कहा महाराज मेरे पड़ोस में एक वृद्घा के पास ऐसा गऊ है जो आप जैसे राजाओं के ही योग्य है, वह नित्य सोने का गोबर देती है । आप उस सोने से प्रजा का पालन करिये । वह वृद्घा इतने सोने का क्या करेगी । राजा ने यह बात सुनकर अपने दूतों को वृद्घा के घर से गऊ लाने की आज्ञा दी । वृद्घा प्रातः ईश्वर का भोग लगा भोजन ग्रहण करने जा ही रही थी कि राजा के कर्मचारी गऊ खोलकर ले गये । वृद्घा काफी रोई-चिल्लाई किन्तु कर्मचारियों के समक्ष कोई क्या कहता ।
उस दिन वृद्घा गऊ के वियोग में भोजन न खा सकी और रात भर रो-रो कर ईश्वर से गऊ को पुनः पाने के लिये प्रार्थना करती रही । उधर राजा गऊ को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ लिकिन सुबह जैसे ही वह उठा, सारा महल गोबर से भरा दिखाई देने लगा । राजा यह देख घबरा गया । भगवान ने रात्रि में राजा को स्वप्न में कहा कि हे राजा । गाय वृद्घा को लौटाने में ही तेरा भला है । उसके रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर मैंने उसे गाय दी थी । प्रातः होते ही राजा ने वृद्घा को बुलाकर बहुत से धन के साथ सम्मान सहित गऊ बछड़ा लौटा दिया । उसकी पड़ोसिन को बुलाकर उचित दण्ड दिया । इतना करने के बाद राजा के महल से गन्दगी दूर हुई । उसी दिन से राजा ने नगरवासियों को आदेस दिया कि राज्य की तथा अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये रविवार का व्रत रखा करो । व्रत करने से नगर के लोग सुखी जीवन व्यतीत करने लगे । कोई भी बीमारी तथा प्रकृति का प्रकोप उस नगर पर नहीं होता था । सारी प्रजा सुख से रहने लगी ।
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई
छांड़ी दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई
संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई...
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई...
अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई
अब तो बेल फैल गई आंनद फल होई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई....
दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई...
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई....
यह भजन हम सब के लिए हे
पायो जी मैने राम रतन धन पायो
पायो जी मैने राम रतन धन पायो
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु,
किरपा कर अपनायो
पायो जी मैने राम रतन धन पायो
जनम जनम की पूंजी पाई,
जग में सभी खोवायो
पायो जी मैने राम रतन धन पायो
खरचे ना खूटे, चोर न लूटे,
दिन-दिन बढ़त सवायो
पायो जी मैने राम रतन धन पायो
सत की नाव खेवटिया सतगुरु,
भवसागर तर आयो
पायो जी मैने राम रतन धन पायो
मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
हरष हरष जस गायो
पायो जी मैने राम रतन धन पायो......
आओ बच्चो तुम्हे आज एक कहानी सुनाये,गधो की कहानी... अरे यह कहानी बहुत अच्छी हे, ओर गधे पता कोन हे, भाई तुम खुद ही देख लो, इन तीनो मे गधे कोन हे, ओर मुझे बताना केसी लगी आप को यह फ़िल्म