यह सुंदर बाल कविता भी हमे अनिल सवेरा जी ने भेजी है. धन्यवाद
चीनू चुहिया, बिल मे बेठी
बाहर बेठी बिल्ली मोसी,
मोका तांक रही थी.
मोसी बोली बडे प्यार से,
बेटी बाहर आओ,
क्यो हो सहमी डरी डरी सी,
कारण तो बतलाओ.
तुम्हारी तो मोसी हुं मै,
मुझ से क्यो डरती हो,दुंगी तुम को चाकलेट टाफ़ी
विशवास अगर करती हो.
चालाक चीनू समझ गई
बिगडी बिल्ली की बातें,
जानू तेरी ओकात
चित्र लिये हे abhivyakti से ऎतराज होने पर हटा दिये जायेगे, उन का धन्यवाद
प्रस्तुतकर्ता
डॉ. मोनिका शर्मा


हे माँ अम्बे जय जगदम्बे
हमको दीजे ये वरदान
कभी ना खंडित होने दें
हम मातृभूमि का मान
वरद हस्त सिर पर रख माता
दिव्य चेतना भर दो मन में
समरसता की शुभ ज्योति को
फैलायेंगें हम कण -कण में
भारत माँ के सारे बच्चे
सिंह रूप हम धर लेंगें
दिव्य धरा का मान बचाने
हर बाधा से लड़ लेंगें
विंध्य, हिमाचल, अरावली का
ना झुकने दें माथा
देव भूमि है धरा हमारी
गायें सब मिल गाथा
पौरुषता का तेज भरो माँ
हम भगत, सुभाष बनें
जग-सिरमौर बने फिर भारत
माँ भारती का विश्वास बनें
चैतन्य का कोना ब्लॉग पर विजय माथुर जी टिप्पणी के शब्द इस रचना के लिए प्रेरणा बने..... उनकी ह्रदय से आभारी हूँ....
यह रचना भी हमे डा० अनिल सवेरा जी ने जगाधरी से भेजी है, बहुत अच्छी अच्छी ओर मन भावन कविताये लिखते है, प्रस्तुत है यह रचना, तो बच्चो सब से पहले डा अनिल अंकल का धन्यवाद तो करो ना, चलो सब से पहले मै उन्हे दिल से आभार कहता हुं तो सब पाठको की तरफ़ से उन्हे धन्यवाद.
टक्कर
हाथी जी को, आया चक्कर,
मच्छर ने जब मारी टक्कर,
टक्कर मार खुशी से नाचा,
खाने लगा, मजे से शक्कर!!
बोला हाथी, नही छोडूंगा,
हाथ पांव तेरे तोडुंगा,
क्रोध दिला मत मुझ को ज्यादा,
नही तो तेरा सर फ़ोडुंगा.
मुस्कुरा कर मच्छर बोला,
करो तो कुछ, तुम अपना ध्यान,
फ़ुंक मजाक मे ही मारु तो,
पहुंच जाओगे, तुम शमशान.
डा० अनिल सवेरा जी