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माफ़ी

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

डा० अनिल सवेरा जी की एक अति सुंदर कविता.......

माफ़ी
बंदर बाबु झुला झुलें,
लेकिन बंदरिया को भुले.
बंदरिया हो गई नाराज,
बोली मै तो लडुंगी आज.


अकेले झुला क्यो झुले तुम,
अपनी पत्नी को क्यो भुळे तुम.
तुम ने तोड दिया दिल मेरा,
आग बावुला हुआ मेरा तन.


बंदर जी ने मांगी माफ़ी,
बोले इतना क्रोध है काफ़ी.
अब ना कभी अकेला झुलू,
प्राण प्रिय ना तुम को भुलु.

8 आप की राय:

M VERMA said...

सुन्दर बाल गीत

अनामिका की सदायें ...... said...

हा.हा.हा. बिचारा बन्दर...
:):):)
सुंदर बाल रचना.
मेरे मन तो बहुत है भाई.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत ही मजेदार......

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

रचना बहुत ही रोचक है!
--
आपकी पोस्ट की चर्चा "बाल चर्चा मंच"
पत्रिका पर भी है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/09/19.html

Akshitaa (Pakhi) said...

वाह, मजेदार बाल-गीत....बधाई.

माधव( Madhav) said...

रचना बहुत ही रोचक है

ASHOK BAJAJ said...

बच्चों के लिए प्रेरनादायी कविता

निर्झर'नीर said...

माफ़ी
बंदर बाबु झुला झुलें,
लेकिन बंदरिया को भुले.
बंदरिया हो गई नाराज,
बोली मै तो लडुंगी आज. is pankti ko yun kahen to jyada sundar lagegi mai galat bhi ho sakta hun
बोली khoob लडुंगी आज

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