नमस्कार, आईये जुडे मेरे इस ब्लांग से, आप अपनी बाल कहानियां, कविताय़ॆ,ओर अन्य समाग्री जो बच्चो से के लायक हो इस ब्लांग मे जोडॆ,आप अगर चाहे तो आप भी इस ब्लांग के मेम्बर बने ओर सीधे अपने विचार यहां रखे, मेम्बर बनने के लिये मुझे इस e mail पर मेल करे, ... rajbhatia007@gmail.com आप का सहयोग हमारे लिये बहुमुल्य है,आईये ओर मेरा हाथ बटाये.सभी इस ब्लांग से जुड सकते है, लेकिन आप की रचनाये सिर्फ़ सिर्फ़ हिन्दी मे हो, आप सब का धन्यवाद

उपहार

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

  यह प्यारी सी कविता हमे भेजी है, कवि राज  डां अनिल सवेरा जी ने, अगर आप भी कोई बाल कविता भेजना चाहे या आप इस ब्लांग से जुडना चाहे तो हमे मेल करे, आप सब का स्वागत है.

उपहार

पापा ले  आये एक माला,
मुन्नी ने था  भगंडा डाला.




माला लगी उसे बडी प्यारी,
खुश थी  उस की सखियां सारी.



पहन  उसे वह गई स्कूल,
लिया  वहां  से गुलाब का फ़ुल.


पापा को दिया  उपहार,
पापा ने किया बहुत प्यार

सच्ची मित्रता......

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

डां अनिल सवेरा जी कि एक ओर सुंदर रचना आप सब के लिये....आप भी अपनी रचनाये भेज सकते है, या फ़िर इस ब्लांग पर मेम्बर बन कर खुद ही अपनी रचनाये प्रकाशित कर सकते है. धन्यवाद

कहती है पुस्तके सब से,
सुनो  हमारी    बात.


हम सब सच्ची मित्र  तुम्हारी,
देती   हर   दम  साथ.


मंजिल पर  पहुचाती सब को,
कभी नही भटकाटी.


मित्रो  बना जो है हम सब का,
उस को राह दिखाती



इसी लिये हम कहती सब को,           पुस्तको का चित्र गुगल से लिया है
बनो मित्र हमारे.                         किसी के ऎतराज पर हटा दिया जायेगा

सचमुच  सारी दुनिया  को तुम,
लगोगे सब से प्यारे

नही पियुंगा दुध...

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

यह सुंदर बाल कविता भी डां अनिल सवेरा जी की सुंदर क्लम से लिखी गई है, ओर मेल से हमे मिली. ओर आप के सामने पेश है....


टै टै कर के  देखो तोता,
करता कितना  शोर.


ठुमक ठुमक नाच दिखाता,
अच्छा लगता  मोर.

तोता कहता खाऊंगा मै
दो मिठ्ठे अमरुद



मोर कहे दाना खाऊंगा
नही पियूंगा दुध.

हे! हंस वाहनी

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

आज की यह सुंदर कविता भी हमे कवि डां अनिल सवेरा जी ने ही भेजी है, उन की बहुत इच्छा हैदकि उन की एक बाल कविता के रुप मे पुस्तक छपे,मै यही आशा करता हुं कि इन की एक नही अनेक पुस्तके हिन्दी मै ओर बाल कविता के रुप मै
छपे, शुभकामनाओ सहित.
हे! हंस वाहनी


हे हंस वाहनी हम को दो,
विधा का वरदान मां.
अलोकित हो जाये जीवन,
ऎसा दो तुम ग्याण मा.

हे! हंस वाहनी ......
भूल से भी भूले ना हम,
सदाचार का मार्ग मां.
कुसगंति से सदा बचे हम,
अपनाये ना कूमार्ग मां.

हे! हंस वाहनी .......
विश्व बन्धुतव का भाव बढाना,
मन मे बढाना प्यार मां.
सब की करे सदा सेवा हम,
करना इतना उपकार मां.

हे! हंस वाहनी ......


कवि डां अनिल सवेरा

गुरु जी हमारे है भगवान.

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

इस कविता के रचियता भी कविे डां अनिल सवेरा जी है, तो बच्चो आप बताये केसी लगी यह कवि


गुरु जी हमारे है भगवान.

बहुत अच्छे है हमारे सर ,
लगता नही उन से   डर.


समय पर वो कक्षा मै आते,
बहुत लगन से हमे पढाते.

डंडे का नही करते प्रयोग,
पल पल का करते सदपुयोग.


विषय को भी सरल बताते,
बडी रुचि से हमे पढाते.

रोचक है पढाने का तरीका,
आता खुब हंसाने का तरीका.


सब बच्चे उन को है चाहते,
सब के मन को भी बांधे

कविे डां अनिल सवेरा

गुब्बारा, बालून

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

                                                  गुब्बारे  / Balloon

बच्चो आज की कविता भी हमे  डां अनिल सवेरा जी ने भेजी है, ओर आप सब से माफ़ी चाहूंगा कि आज की बाल कविता मै एक शब्द अग्रेजी का आ रहा है, लेकिन इस को हटाने के लिये मुझे अनिल सवेरा जी से पूचना पडता, तो चलिये आज ... ऎसे ही सही......


                                      गुब्बारा, बालून
पापा ले आये बालून,
उड पहुचा वो देहरादून.

देहरा दून मै खाई लिची,
देखी पहाडियां ऊंची नीची.


मजा आ गया कर के सेर,
धरती पर नही  टिकता पेर.

कर के सेर वो वापिस लोटा,
हो गया था काफ़ी मोटा.

कवि डां अनिल सवेरा जी

ऒस की बूंदे

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

यह सुंदर बाल कविता भी हमे डां अनिल सवेरा जी ने भेजी है, अगर आप भी कोई बाल कविता हमे भेजना चाहे तो भेजियेगां, हम उसे जरुर यहां प्रकाशित करेगे, डां अनिल जी का धन्यवाद.

                                                   ऒस की बूंदे

नन्ही मुन्नी ऒस की बूंदे
करती है मन को शीतल

लगता है मानो ऎसा
हमे पुकारे यह प्रति पल

स्पर्श सुर्य की किरणो का
कर देता इन को उज्जवल

लंहगा

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

यह बाल कविता भी हमे कवि डा अनिल सवेरा जी ने भेजी है.

लोमडी काकी, पहन के चप्पल,
चली खरीदने मीठा एप्प्ल .
एप्पल लगा उसे बडा मंहगा,
खरीद लिया उस ने लंहगा
लंहगा पहन लगी इतराने.

लोमड जी लगे मुस्कुराने.
अटका पांव तभी जल्दी मै
बोली ठीक थी मै साडी मै.
अब नही लंहगा पहनूंगी.
साडी मै ही खुश रह लुंगी

डां अनिल सवेरा

मच्छर जी

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

यह कविता भी हमे डां अनिल सवेरा जी ने भेजी है.


गुन गुना कर मच्छर जी ने
कान खा लिये रात
कहां कहां नही काटा उसने
क्या बताये बात.


मुंह पर काटा, हाथ भी काटा
काटे दोनो पांव
काट लिया शरीर सारा
लगा जहां भी दांव

तरकीब लडाई जितनी भी
वो सारी हो गई फ़ेल
मच्छर जी ने रात भर
बनाई हमारी रेल



Dr.anil savera

मेला (एक पंजाबी बाल कविता)

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

यह कविता भी मुझे डां अनिल सवेरा जी ने भेजी है , ओर मै यहां सब बच्चो के नाम इसे प्रकाशित कर रहा हुं.

साढे पिंड बिच लग्या मेला
 मै बापू नाल ग्या अकेला


बज रिया सी पॊ पॊ वाजा
झुले वाला केन्दा आजा

खिडोने बिकदे प्यारे प्यारे
बिकदे सी रंग बिरंगे गुब्बारे


मिठ्ठाई वेखी ते टपकी लार
जादुगर दा शो तेयार

घुमे अस्सी मज्जे नाल मेला
रेह्या जेब चा ना ईक भी धेला

   Dr. Anil savera

टक्कर, एक बाल कविता

प्रस्तुतकर्ता राज भाटिय़ा

प्यारे बच्चो यह कविता भी हमे अकल डां अनिल सवेरा जी ने आप सब के लिये भेजी है, आशा करता हू आप सब को पसंद आये, अगर पसंद आये तो अकल अनिल सवेरा जी को धन्यवाद जरुर कहे

हाथी जी को, आया चक्कर,
मच्छर ने जब मारी टक्कर,
टक्कर मार, खुशी से नाचा,
खाने लगा, मजे से शक्कर!!

बोला हाथी, नही छोडुंगा,
हाथ -पांव तेरे तोडूंगा,
क्रोध दिला मत मुझको ज्यादा,
नही तो तेरा सर फ़ोडूंगा.

मुस्कुरा कर मच्छर बोला,
करो तो कुछ,तुम अपना ध्यान,
फ़ूक मजाक मै ही मारू तो,
पहुच जाओगे, तुम शमशान.

लेखक डां अनिल सवेरा