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विग्यान --बाल कविता

प्रस्तुतकर्ता निर्मला कपिला

विग्यान
आओ गोलू,रहीम ,राधा
सीखें हम विग्यान
सुने पेड पौधों की कहानी
जय जय जय विग्यान

बढी उपज उसर हरियाली
मित्र बना विग्यान
टेलोविज़न पहुँच घर घर्
मिटा दिया अग्या

खोले बंद समय के ताल
करके नये अविश्कार
सै हुई ग्रह नक्षत्रों की
रचा नया संसार

इस पर निर्भर भविषय अपन
बना प्रकृति विग्यान्
कम्प्यूटर ने क्राँति  मचाई
काम बने आसान

अस्त्र शस्त्र इसके संहारी
रखना इन पर ध्यान
दूर किये दुख रोज़ हजारों
ला मुख की मुस्कान
जय जय जय विग्यान
लेखक-- डा़ चक्रधर नलिन जी

गमला

प्रस्तुतकर्ता निर्मला कपिला

गमला

यग्य कुण्डसा पवित्र गमला
हरा भरा मन भावन गमला

प्रकृति नये रूपों मे लाता
सुन्दरता पौरुश का दाता्
रंग विरंगे फूल खिलाता
शुद्ध वायू से घर भर देता
माता सा उदार है गमला

इसमे सुन्दर पौधे लगते
सुबह शाम को खूब महकते
पाकर धूप लहलहा उठते
जगमग जगमग हर पल होते
सब का चित चुराता गमला

तितली इस पर है मंडराती
हवा इसे नव गीत सुनाती
सभी रोग दुख दूर भगाती
जीवन कैसे जीयें सिखाता
रहा थकान मिटाता गमला

यग्यकुण्ड सा पवित्र गमला
हरा भरा मन भावन गमला

लेखक --डा. चक्रधर नलिन

प्रस्तुतकर्ता निर्मला कपिला

इच्छा

अम्मा नित्य रात को नभ मे
चँदा मामा क्यों आते हैं
सुबह देख कर सूरज दादा
दूर पहाडी क्यों छुप जाते हैं

सोच रहा हूँचँदा मामा
के संग मे जी भर कर खेलूँ
चन्द्र लोक सीढी से जाऊँ
हँस कर सारे संकट झेलूँ

चन्द्र लोक से रोज बृहपति
ग्रह की यात्रा पर मै जाऊँ
मंगल ग्रह ध्रुव लोक निहारूँ
अमृत कलश वहाँ से लाऊँ

धरती पर मुस्काने बाँटूँ
सब को अमृत बूँद पिलाऊँ
नहीं किसी का करूँ निरादर
सब को अपने गले लगाऊँ

लेखक---- डा. चक्रधर नलिन

veer putr baal kavita

प्रस्तुतकर्ता निर्मला कपिला

वीर पुत्र

वीर सैनिको निर्भय हो कर आगे बढते जाना
सीने पर हंस गोली खाना पीछे लौट नआना

धरती माता को प्रणाम कर,
आगे बढ्ते जाओ
मातृभूमि के लिये युद्ध मे
बढकर शीश कटाओ


किसी मुल्य पर राष्टृ रक्षको लक्षय विजय का पाना
माता बहने चाह रही हैं जय का तिलक लगाना

तुम्हीं यश तेज पराक्रम
तुम गौरव गरिमा हो
उदहारण हो सकल विश्व के
तुम स्वदेश महिमा हो

शपथ शत्रु को करो पराजित,कहता नया जमाना
कदम बढाते चलो निरन्तर समय न तनिक गवाना

जन्म भूमि की रक्षा मे जो
अपने प्राण लुटाते हं
शीश झुकाते सूर्य चन्द्र
मेले पर्व मनाते हैं

खट्टे करना दाँत शत्रु के पीछे फिर मुस्काना
वीरपुत्रब शस्त्र उठाओ पहन युद्ध का बाना
lekhak Dr. Chakardhar Nalin