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"मुनुआ रोये ऊं ऊं ऊं "

प्रस्तुतकर्ता डॉ. नागेश पांडेय संजय


प्यारे बच्चों ! 
मेरे पड़ोस में एक छोटा सा बच्चा रहता है .
 उसका नाम है मुनुआ .
 हर रोज उसका एक अजीबोगरीब सवाल होता है .
 एक बार उसने पूछा -
 "अम्मा मेरे मूंछ न क्यों ?"
माँ ने जबाब तो दिया , मगर ...! मगर... ? 
 तो तुम खुद ही  पढो न यह बाल गीत . 
सारी बात जान जाओगे . 
हाँ मुझे बताना जरुर , तुम्हें कैसा लगा यह बाल गीत ?
 बताओगे न ? 
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डा. नागेश पांडेय 'संजय'का बाल गीत :
"मुनुआ रोये ऊं ऊं ऊं "

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मुनुआ  रोए ऊँ ऊं ऊं
अम्मा मेरे मूंछ न क्यों ?

 चाचा मुझे चिढाते  है 
अपनी मूंछ दिखाते है
 हंस हंस कर बतलाते है
 मूंछ तुम्हारे थी लेकिन
 बिल्ली आई चाट गयी
 अम्मा अम्मा   बोलो  तो
 क्या चाचा की बात सही
 बात सही हो तो नकटी
 बिल्ली की मूंछे नोचू .
 बोलो बोलो मूंछ न क्यों

अरे अभी तू छोटा है 
और नहीं तू मोटा है
 साग सब्जिया खाया कर
 दूध खूब सटकाया कर 
खूब बड़ा हो जायेगा
 तंदुरुस्त बन जायेगा
 मूंछे खुश हो जाएगी
 झट पट चट उग आयेंगी
 चाचा की बाते सुनकर 
बेमतलब ही चिढ़ता तू .
 अब मत रोना ऊँ ऊँ ऊँ

 माँ , मुझको बहकाओ मत
 बाते ढेर बनाओ मत
 बिल्ला के भी मूंछे है
 पिल्ला के भी मूंछे है
 बिल्ला भी तो छोटा है 
पिल्ला तनिक न मोटा है 
मैंने मन में ठाना है 
मूंछे मुझको पाना है
 नकली ही तुम मगवा दो 
उन्हें लगाकर खुश हो लूँ .
 तब न रोऊ ऊँ ऊँ ऊँ 
तब न पूंछू मूंछ न क्यों ?
[] [] []
 
 चित्र : गूगल सर्च से साभार 

 

10 आप की राय:

Patali-The-Village said...

बहुत ही सुन्दर बाल कविता| धन्यवाद|

डॉ. मोनिका शर्मा said...

प्यारी बालकविता.....

Roshi said...

bahut hi sunder lagi apki bal kavita...
http://roshi-agarwal.blogspot.com

Er. सत्यम शिवम said...

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

रावेंद्रकुमार रवि said...

बहुत मज़ेदार!

वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर said...

बाल कविता बहुत ही सुन्दर है................बालमन सी सुलभता लिये हुए..


एक निवेदन.............
मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।

Chaitanyaa Sharma said...

मजेदार है मुनुआ की कविता

Dr Varsha Singh said...

बहुत ही सुन्दर बाल कविता....
.... बधाई

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर बाल कविता जी, धन्यवाद

Dr (Miss) Sharad Singh said...

मुनुआ की मांगें और बालहठ ......
सुन्दर...बहुत सुन्दर....
सुन्दर गीत के लिए बधाई।

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