बच्चो आओ आज तुम्हे निर्मला आंटी जी की भेजी एक कविता सुनाते है, पढ कर बताना ओर निर्मला आंटी को धन्यवाद भी बोलना..... बहुत अच्छी कविता है, तो यह लो ...
एक सीख
आओ बच्चो तुम्हें दिखाऊँ
इक मँदिर इक गुर्दुवारा
देखो दोनो मे भगवान है
क्या मेरा क्या तुम्हारा
मस्जिद देखो या देखो चर्च
शीश झुकाना सब का फर्ज़
बच्चो तेरे मेरे की
कभी ना डालो रीत
मिलजुल कर रहोगे जितना
बढेगी उतनी प्रीत
सब धर्मों का एक ही सार
दया करुणा प्रेम पियार
गर तुम इसको मानोगे
तभी प्रभू को जानोगे
निर्मला कपिला जी की कलम से
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अपने से



अरे बच्चो ! कहां हो भाई, सुना है बहुत गर्मी पड रही है , बाप रे, बच के रहना, बच्चो खुब पानी पीना, शिकंजवी,लस्सी ओर ऎसी बहुत सी चीजे जो आप सब के मम्मी पापा कहे, ओर हां ज्यादा चीनी नही बेटे, ओर पानी ऊबाल कर पीना तो ज्यादा अच्छा होगा.
चलो आज तुम्हे एक बहुत सुंदर गीत सुनाते है !! अरे मुझे कहां आता है गाना, अरे मुझे तो गीत लिखना भी नही आता, बस तुम सब के लिये मै सुंदर सुंदर गीत ढुंढु ढुंढ कर लाता हुं, तो बच्चो सुनो यह गीत..
मेरी नानी
मेरी नानी बडी सयानी
पर मेरे आगे भरती पानी
सब उससे यूँ डरते हैं
जब उसके तेवर चढते हैं
जब मेरे पास वो आती है
भीगी बिल्ली बन जाती है
मै उसको खूब नचाता हूँ
घोडी बना पीठ पर चढ जाता हूँ
सारे घर मे घुमा घुमा कर
खूब आनन्द उठाता हूँ
वो हाय तौबा मचाती है
लेकिन जब थक जाती है
फिर गोदी मे बिठा कर
प्यार वो मुझ को करती है
दुनिया भर की अच्छी बातें
फिर वो मुझ से करती है
उसके गुस्से को समझो यार
उसके गुस्से मे भी है प्यार
लेखक:- निर्मला कपिला जी(धन्यवाद सहित)
आज इस कविता का तीसरा हिस्सा....
मेरी नातिन्
अब आगे सुनो उस की शैतानी
करती है अपनी मनमानी
जब वो सहज हो जाती है
खिलैनो की बारी फिर आती है
कुछ इधर फेँक कुछ उधर गिराती
जब मम्मी उसको डाँट पिलाती
तो भीगी बिल्ली बन जाती
फिर पापा को खूब दौडाती
घोडा बना पीठ पर चढ जाती
दोनो को वो खूब नचाती
फिर कम्प्यूटरचेयर पे चढ जाती
की बोर्ड पर हाथ चलाती
पूरा नेट वर्क करती क्न्ट्रोल
तार को देती साकेट से खोल
चिडिया की जब सुने आवाज़
चीँ चीँ करती जाती भाग
ऐसे उसकी बोलती बोली
जैसे हो वो इसकी सहेली
मम्मी कहती मेरी लाडली
पापा कहते मेरी जान
वो दोनो से बन जाती अनजान
नहीं हाथ पकडाती है
ना--ना--कह उन्हें चिढाती है
जब दोनो मुँह फुलाते हैँ
तो भाग गले लग जाती है
लेखन निर्मला कपिला जी दुवारा
मीठे लगते उसके बोल
बातें करके इतराती है
ऐसे सुरताल बनाती है
जैसे हो सरगम अनमोल
सुनाती हूँ दिन भर की शरारत
लडकी है या कोई बुझारत
बात इशारों से समझाये
मम्मी पापा भी चकराये
उठते ही कसमसाती है
जैसे कुछ समझाती है
ना समझो तो शोर मचाती ह
सब की सिटीपिटी गुम हो जाती है
फिर पापा बात समझते हैं
नैपी उसका बदलते हैं
फिर वो सहज हो जाती है
शरारत से मुस्कराती है
आज बस इतना ही काफी
जाने की चाहती हूँ माफी
कल फिर से मै आऊँगी
नयी शरारत बतलाऊँगी
ध्न्यवाद ... लेखक निर्मला कपिला जी का
नमस्कार आप सभी को, आप सभी निर्मला कपिला जी को तो जानते ही है, मेने उन से पिछली बात प्राथना की थी कि आप कुछ मेरे इस ब्लांग पर भी लिखे, आज उन्होने मुझे एक कविता ई मेल से भेजी है, जब कि वो भी इस ब्लांग की मेम्बर है, ओर वो कविता मै आप सब को प्रस्तुत करता हूं.यह तीन भागो मे है, आज पहला भाग.
अगर आप भी इस ब्लांग के मेम्बर बनना चाहे तो मुझे अपना ई मेल पता भेज दे बस.
तो लिजिये ""निर्मला कपिला जी की बाल कविता"
मेरी नातिन
आसमान से उतरी है वो
ज्यों परियों की रानी
ठुमक ठुमक कर चलती है वो
जैसे गुडिया जापान
छोटी सी वो गोल मटोल
प्यारे मीठे उसके बोल्
बातें करते तुतलाती है
फिर मँद मँद मुस्काती है
हँसे खेले धूम मचाये
है वो बडी सयानी
जब खाने की बारी आये
तो करती है मनमानी
हँसती है वो फूलों जैसे
कलियों जैसे मुस्काती है
नयी शरारत कर के वो
बुलबुल से इतराती है
नेट पर देख के नाना नानी
उसकी प्यारी सी अदायें
सात समन्दर पार वो बैठे
देख उसे बहुत हर्षायेँ
दाल भात उसे ना भाये
फल सब्जी से मुँह चुराये
जब देखे वो दूध की बोट्ल
झट से पुस्सी कैट बन जाये
मम्मी की वो लाडली
पापा की है मानो जान
ऐसी प्यारी से बेटी को
सब खुशियाँ देना भगवान
बच्चो दूध मलाई खाओ
फल सबजी से ना मुँह चुराओ
अगर अच्छा होगा खान पान
तभी बनोगे तुम महान
निर्मला कपिला
अरे बच्चो क्या तुम भी कभी पापा से नाराज हुये हो....
देखो तो इस बिटिया रानी के कितने नखरे है.
धरती
![]() | तितली भौंरे इस पर झूमें रोज हवाएं इसको चूमें |
![]() | चंदा इसका भाई चचेरा बादल के घर जिसका डेरा |
![]() | रोज लगाती सूरज फेरा रात कहीं है, कहीं सवेरा |
![]() | पर्वत, झील, नदी, झरने नित पड़ते पोखर भरने |
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![]() | बोझ हमारा जो है सहती वही हमारी प्यारी धरती |
--श्याम सखा 'श्याम'
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हेल्लॊ बच्चॊ खुब छुट्टियो का मजा ले रहे है, सारा दिन ऊधम मचाते हो या नही? ओर तुम गांव मै या फ़िर शहर मै दादी मां के घर गये कि नही.... अरे सब गये, अच्छा अच्छा वही हो, ओर दादी मां को खुब तंग भी करते होगे, लेकिन दादी मां तो खुब खुश होती होगी ना... तो चलो आज अपनी अपनी दादी मां को यह गीत सुनाओ फ़िर देखो दादी केसे खुश होती है...
छुक छुक छुक......छुक छुक छुक......रेल गाडी रेल गाडी.... छुक छुक छुक......छुक छुक छुक......
रुको भाई रेल गाडी वाले !!! अरे रुको रुको..... चलो बच्चे अब जल्दी से हमारी इस रेल गाडी के पीछे बेठ आओ.... १ २ ३ अब चली हमारी रेल गाडी.... छुक छुक छुक......छुक छुक छुक...... छुक छुक छुक...... छुक छुक छुक......
नमस्कार अजी आज आप सब से एक निवेदन है जो भी मेरे इस ब्लांग को अपनाना चाहता हो, यानि बच्चो के लिये अपनी कविता, कहानिया, फ़ोटो, जानकारियां,विडियो,बच्चो के खेल,पहेलियां ओर भी बहुत सी जान कारिया, शिक्षा की बाते लिखना चाहता हो तो मुझे इस पत्ते पर मेल करे, आप को मै इस ब्लांग का हिस्सेदार बना लुंगा, यानि आप को सीधा लिंक मिल जायेगा, अपनी रचना प्रकाशित करने के लिये.
तो आईये हम अपने बच्चो को कुछ अच्छा दे सके, चलिये मेरा साथ दे,आईये हम अपने बच्चो को हिन्दी से जोडे,
मै दिल से आप सब का आभारी रहुगां.
मेरा मेल राजभाटिया००७ एट जीमेल.कोम, या फ़िर इसे मेरे परिचय पर नोट कर ले, यहां लिखना थोडा सही नही, या फ़िर मुझे टिपण्णी मे अपना मेल भेज दे.
आप सभी का धन्यवाद
अरे बच्चो आओ आज तुम्हे बहुत ही सुंदर गीत सुनाते है, लेकिन वादा करो तुम भी इसे याद करोगे...
तो सुनो......
नानी को देखा है बच्चो , बहुत प्यार करती है ना, तो चलो आज तुम्हे नानी मां की वो कहानी सुनाते है जो हम सब ने बचपन मै सुनी थी, लेकिन ध्यान रहे कही नानी नारज हो गई तो मनाना भी तुम्हे ही पडेगा.....
तो सुनो